प्रभु श्री राम मंदिर
|| श्री राम जय राम जय जय राम ||

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

श्री अंजनीलाल जी के मंदिर के ठीक सामने ट्रस्ट द्वारा एक भव्य विशाल एवं दर्शनीय मंदिर का निर्माण कराया गया है। जिसमे भगवान श्री राम जी, माता जानकी, श्री लक्ष्मण जी एवं श्री अंजनीलाल जी के साथ विराजमान है। मंदिर की आकृति एक भव्य राज महल के समान है जिसके बाहर एवं अन्दर श्वेत मकराना संगमरमर लगाया गया है। जिसमे कि गई सुन्दर नक्काशी, जालियां, विशाल परदे एवं फानूस मंदिर को आकर्षक रूप प्रदान करते है। भगवान की प्रतिमाएं मनमोहक है। इनके दर्शनों से मन को एक आलौकिक आनंद एवं शांति प्राप्त होती है तथा समस्त संकटो का हरण एवं मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। श्री राम मंदिर भगवान श्री अंजनीलाल जी एवम् भगवान व्दादशज्योतिर्लिगेश्वर महादेव जी के मन्दिर एवम् सभी आवश्यक भवन निर्माण के बाद भगवान ने प्रेरणा दी की अब मेरे स्वामी भगवान श्री राम जी का भव्य एवम् विशाल मन्दिर का निर्माण कराया जाये। ट्रस्ट सदस्यों ने पूर्व में ही निर्णय कर रखा था कि भगवान श्री राम जी के मन्दिर के लिये सबसे उपयुक्त स्थान भगवान श्री अंजनीलाल जी के मन्दिर ठीक सामने ही है।

श्री राम मंदिर भूमि का चयन खुद श्री अंजनीलाल जी ने किया।

उस स्थान पर कई वर्षो से एक बहुत बड़ी एवम गहरी झील थी जिसमे हजारों की संख्या में साँप, बिच्छू, केकड़े तथा जहरीले जीव जन्तु रहते थे। भगवान की कृपा से ट्रस्टी हमेशा बहुत दूर की सोचते हुऐ मन्दिर धाम के विकास की योजना बना कर कार्य रूप में परिणित करते है। उसी के अनुसार ट्रस्टियो ने कई वर्ष पूर्व उस झील को मिट्टी से भरकर समतल करने का निर्णय कर लिया था। उसी अनुसार ट्रस्टियों ने योजना बनाई की नगर मे जहां कही भी नया भवन बनाने के लिये पुराना भवन तोडा जा रहा हो उस भवन के मालिक से उस में से निकलने वाले मलवे को मन्दिर की झील में डालने का निवेदन किया ऐसा करने पर परिणाम यह हुआ की सबने खुशी खुशी निवेदन स्वीकार किया और धीरे धीरे हजारो ट्राली मलवा उस झील मे समाने लगा जिससे कुछ वर्षो मे झील समतल हो गई ये सब भगवान श्री अंजनीलाल जी की ही योजना थी। उन्हे तो अपने सामने हमेशा दर्शन एवम् सेवा के लिये भगवन श्री राम जी को बैठाना था इसलिये धर्म सम्राट स्वामी श्री चैतन्य ब्रह्मचारी जी महाराज से भगवान व्दादशज्योतिर्लिगेश्वर जी मन्दिर के बगल में बनाने का सुझाव दिलवाया ओर नगर वासियो से इतनी विशाल झील को पुरवा कर भगवान श्री राम जी के मन्दिर निर्माण के लिये भूमि समतल करवा दी साथ ही जहरीले जीव जन्तुओ का भय हमेशा के लिये समाप्त हो गया।

मंदिर निर्माण एवं श्री राम दरबार प्राण प्रतिष्ठा

अब राजाधिराज भगवान् श्री राम जी के मन्दिर निर्माण का प्रस्ताव ट्रस्ट की मीटिंग में हर्ष के साथ सर्वसम्मिति से पारित हुआ साथ ही यह भी निर्णय लिया कि चाहे मन्दिर के निर्माण मे कुछ लम्बा समय लगे लेकिन मन्दिर शिवालय के सामान ही दर्शनीय बनना चाहिये। इसके लिये वास्तुकार की खोज कर भोपाल के प्रसिद्ध श्री सिंह साहब को अधिकृत कर मन्दिर की डिजाइन नक्शा प्लान एवम् एस्टीमेट बनाने को कहा सब कुछ देख कर व्यय का अनुमान लगाया करीब एक करोड़ रुपये। इतनी बड़ी राशि एकत्रित करने के लिए ट्रस्ट ने निर्णय लिया कि जो भी दान दाता ₹ 2111 से अधिक की राशि दान मे देगे उनका नाम संगमरमर की पट्टिका पर अंकित किये जावेगे इस के बाद निर्माण कार्य प्रारम्भ करेने की तैयारियॉ और रूप रेखा बनाई गई।

योजना को कार्य रूप मे परिणित करने के लिये दिनांक 1 अक्टोबर 2003 को मालवा में जाने माने ग्राम कोडकिया के संत स्वामी राम दास जी महाराज के कर कमलो से भूमि पूजन किया इस कार्यक्रम के मुख्य यजमान समिति सदस्य श्री कृष्ण जी साहू थे। आपने श्री राम दरबार की प्रतिमाए अपनी ओर से देने का संकल्प लिया। मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ होकर तीर्व गति से बढ़ने लगा। इस मन्दिर का ढांचा ईट सीमेन्ट से बनकर तैयार हो गया था। लेकिन अन्दर से परिक्रमा मार्ग होने के कारण गर्भ गृह छोटा हो गया था। जिसको बड़ा करना असम्भव था। भगवान श्री अंजनी लाल जी से इस समस्या का हल निकालने की प्रार्थना की।

कुछ ही दिनों बाद भगवान की कृपा से इस्कॉन मन्दिर की बुक्स बेचने वाली बस जिसमे कई विदेशी व भारतीय भक्त थे मन्दिर में रात्रि विश्राम हेतु आई। उसमे एक विदेशी मन्दिर निर्माण के विशेषज्ञ भी थे। उन्हें मन्दिर कि गर्भ ग्रह कि समस्या बताई उन्होंने सभी ट्रस्टीयो को बुला कर समस्या का हल निकाल कर परिक्रमा मार्ग मन्दिर के बाहर से करने का सुझाव दिया जिसे स्वीकार कर निर्माण कार्य को पुनरूप्रारम्भ किया। उसके बाद पूरा निर्माण कार्य भगवान श्री अंजनीलाल जी ने अपने हाथ मे लेकर ट्रस्टियो के माध्यम से ही पूर्ण कराया। उसके बाद सीमेन्ट के कार्य के स्थान पर श्वेत मकराना मार्बल से कार्य हुआ और मन्दिर इतना अधिक सुन्दर बना कि जो भी देखे तो देखता ही रह जाय। राजाधिराज भगवान श्री राम जी का मन्दिर एक वैभव शाली राज महल के सामान दिखाई देता है। मन्दिर की दीवारो पर उच्च कोटि का श्वेत मकराना मार्बल लगा है। मन्दिर के तीनो और तीन दरवाजे है और ये तीनो दरवाजे गोल्डन पालिश किये हुए धातु के बने है। इनके सामने बने पोर्च के चारो और सुन्दर नककाशी वाले श्वेत संगमरमर के स्तम्भ और तोरण लगे है। मन्दिर के ऊपर की और दर्शन करने पर पांच विशाल सुन्दर शिखर राज महल रूपी मन्दिर मे चार चाँद लगाते है। मन्दिर के अन्दर प्रवेश करते ही राज मन्दिर की शोभा व सजावट मन को मोह लेती है। मन्दिर में लगे पर्दे फानूस सुन्दरता को कई गुना बड़ा देते है। मन्दिर की प्रतिमाओ का प्राण प्रतिष्ठा समारोह दिनाक 4 दिसम्बर 2011 को किया गया इसे भी भगवान व्दादश ज्योतिर्लिगेश्वर महादेव जी कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह से भी विशाल व भव्य स्तर पर मनाया गया इस आयोजन में भी एक लाख पचास हजार से अधिक लोगो ने महा प्रसादी (भोजन) ग्रहण किया इस विशाल आयोजन में भी कई चमत्कार देखने को मिले।

मन्दिर में राज सिहासन पर विराजमान भगवान श्री राम जी, माँ जानकी जी, भ्राता लक्ष्मण जी एवं हनुमान जी की सुन्दर मनमोहक प्रतिमा पर नजर पड़ते ही मन मे एक अलौकिक आनन्द एवम् शांति की अनुभूति होती है। भगवान की प्रतिमाए सिद्ध व चैतन्य हे जहाँ हर मनोकामनाऐं पूर्ण होती हे सब संकट एवम् बीमारियाँ समाप्त हो जाती है। मन्दिर पर होने वाली प्रातः व सायंकाल आरती में सम्मिलित होने पर लगता है कि जैसे साक्षात् अयोध्या में रामलला जी की आरती मे खड़े है।