श्री अंजनी लाल की प्रेरणा से कुछ नवयुवकों ने रचा इतिहस

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निर्जन क्षेत्र से शुरू हुई श्री अंजनी लाल मंदिर धाम की यात्रा

आज से करीब 45 वर्ष पूर्व भगवान श्री अंजनीलालजी एक चबूतरे पर नगर से दूर घनी झाडियों के बीच निर्जन क्षेत्र में विराजमान थे। भगवान श्री अंजनीलालजी ने धाम के विकास के लिये नगर के कुछ नवयुवकों को प्रेरणा देकर उन्हें धाम की उन्नति व सुन्दरता ब-सज़ाने की जवाबदारी सौंपी। भगवान की कृपा एवं आशीर्वाद से उन युवकों के मन में इस स्थान के विकास हेतु विचार आया। इसके लिये इन नवयुवकों ने श्री अंजनीलाल मन्दिर समिति का गठन किया। आज मालवा क्षैत्र की प्रतिष्ठित संस्था के रूप में श्री अंजनीलाल मन्दिर ट्रस्ट एवं समिति पूरी लगन, निष्ठा, भक्ति एवं ईमानदारी से सेवारत है। सभी सदस्य मन्दिर धाम के सेवाकार्य को करना अपना सौभाग्य समझते है। इसी का प्रतिफल है कि आम जनों का मंदिर धाम के प्रति सहयोग, विश्वास अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। यह स्थान निरंतर विकास की ओर अग्रसर है। श्री अंजनीलाल मंदिर धाम की अब तक की विकास यात्रा का लेखा-जोखा यहां प्रस्तुत है। श्री अंजनीलाल मन्दिर यह स्थल प्रारम्भ मे एक चबुतरे के रूप मे था, इसके उपर एक छतरी थी, जिसमे भगवान श्री अंजनीलालजी विराजमान थे। समिति निर्माण के पूर्व नगर के कुछ भक्तजनों जिनमें स्व. श्री श्यामदुलारे जी मिश्रा, स्व. श्री मांगीलालजी चैरसिया, स्व. श्री सूरजमल जी चैरसिया, स्व. श्रीटीकाराम जी कुशवाह, स्व. श्री सुदर्शनजी क्रांति, श्री हरिओमजी सोनी, श्री पुन्नालालजी गवली, स्व. श्रीगोकुलदास जी लखपती, श्री बद्रीलालजी बारबर, स्व. श्रीगोरेलालजी सोनी, श्री जमनालालजी मारोठिया, स्व. श्री शम्भूदयाल जी शिवहरे, स्व. श्री विष्णुप्रसाद जी पटवारी, स्व. श्री रामजी दासजी पटवारी, श्री छगनलालजी पालीवाल, श्रीहोतीलालजी गोयल, श्री शिव बाटी, श्री गोपालकृष्णजी शर्मा आदि श्रीहनुमान जयंति, विजयादशमी आदि पर्व पर चबूतरे की पुताई, झण्डे-झण्डी एवं मोमबत्तियां लगाकर सजावट करते थे।

45 वर्ष पूर्व चबूतरे पर विराजित थे श्री अंजनीलाल जी

करीब 45 वर्षो पूर्व कुछ युवकों के मन मे भगवान ने मंदिर बनाने की प्रेरणा दी उन्होंने श्री अंजनीलाल मन्दिर समिति का गठन कर चबूतरे पर एक टीनशेड बनाने का निर्णय लिया। इसके पूर्व तक यह स्थान एक निर्जन, दुर्गम स्थान के रूप मे ही था चारों ओर घना जंगल, मन्दिर के सामने छोटे से तालाब जैसा ग-सज्ढा था जिसमे जहरीले कीड़े एवं सांप, बिच्छु आदि रहते थे। इस ग-सज्-सजे को धीरे-धीरे हजारों ट्राली मलवा डलवाकर भरवाया गया। ए.बी. रोड से मन्दिर तक का रास्ता पूरा वीरान था, बीच-बीच मे तीन-चार स्थानों पर बारिश के मौसम में रास्ते पर कमर-कमर तक पानी भर जाता था उसमे से निकलना मुश्किल होता था। लेकिन सभी के सहयोग से यह निर्जन, वीरान रहने वाला स्थल अब रमणीय स्थल बन गया है।

चंदा नहीं श्रद्धापूर्वक दिये दान से हुआ विकास

मंदिर समिति ने जब खुले आकश तले विराजित भगवान श्री अंजनीलाल की प्रतिमा पर छाया हेतु टीन शेड लगाने की कार्य योजना बनाई तो समिति सदस्यों ने अपनी ओर से 500 रूपये जुटाये। शेष राशि के लिये नगर से चंदा करने निकले। किन्तु जिसका अच्छा अनुभव नहीं रहने से सभी ने संकल्प लिया कि मंदिर के किसी भी कार्य के लिये चंदा नहीं किया जावेगा। जिसकी श्री अंजनीलाल जी प्रति श्रद्धा है तथा स्वेच्छा से जो दान देने के लिये तैयार रहते है उन्हीं श्रद्धालुओं से सम्पर्क कर उससे दान लेंगे। तभी से समिति इस परम्परा को कायम रखे हुई है। हजारों लोग श्रद्धा से सहयोग, दान देकर मंदिर धाम का विकास कर रहे है। टीन शेड के बाद छोटा सा आरसीसी की छत वाला मंदिर बना। वर्तमान में ये मंदिर भी भगवान श्री राम जी एवम भगवान द्वादशज्योर्तिलिंगेश्वर महादेव के मन्दिर के समान श्वेत मकराना संगमरमर से भव्य विशाल व दर्शनीय मन्दिर बनने जा रहा है। धीरे धीरे मन्दिर पर प्रतिदिन पूजा, पाठ, अभिषेक आरती होने के कारण मंदिर में दर्शनार्थियों की तादात ब-सज़ने लगी साथ ही श्रद्धालुओं में दान व सहयोग की भावना भी ब-सज़ती गई।

सन् 1972 से शुरू हुआ नवरात्रि महोत्सव

नगर वासियों को आध्यात्मिक, धार्मिक माहौल प्रदान करने हेतु श्री अंजनीलाल मंदिर समिति ने सन 1972 से शारदीय नवरात्रि पर्व को महोत्सव के रूप में मनाने की शुरूवात की। मंदिर समिति के सदस्य श्री मोहन बजाज, श्री दिलीप बजाज के पिता स्व. श्री बद्री लाल जी बजाज के सुझाव पर श्री नरोत्तम दास जी बकानी वाले के संगीत युक्त प्रवचन का आयोजन रखा गया।

नगरवासियों के लिये यह प्रथम अवसर था काफी श्रोता आये तब से आज तक प्रतिवर्ष अश्विन मास मे विशाल नवरात्री (शारदीय) महोत्सव मनाया जा रहा है। इस महोत्सव मे कई वर्षों तक रात्री मे 8 से 1 बजे तक प्रवचन कराये जाते थे। नवरात्री महोत्सव एवं अन्य कार्यक्रमों में देश के प्रतिष्टित एवं प्रसिद्ध विद्वानों को आमंत्रित किया जाता था। प्रत्येक को 45 मिनिट से 1 घण्टे प्रवचन का समय प्राप्त होता था। कईं विद्वानों, संत महात्माओं के चरण इन आयोजनों के कारण मन्दिर परिसर पर पड़े। मंदिर परिसर पर प्रतिवर्ष आयोजित नवरात्रि महोत्सव में कईं विद्वानों, संत महात्माओं का आगमन हुआ। भगवान श्री अंजनीलाल जी की सिद्ध प्रतिमा और तपस्वी संत महात्माओं की चरण रज से मंदिर धाम की ख्याति आज धार्मिक, सामाजिक क्षेत्र में अपना विशेष स्थान रखती है।